हमने अब तक जिसे समझा बैगाना,
हकीकत में निकला वो हमारा दिवाना।
हमने ये अब तक क्यो नही जाना,
हमारे लिए भी जल रहा एक परवाना।
खिड़की में जब भी आना हो हमारा,
आ¡खो से अपनी हमे करता वो ईशारा।
उनके ईशारे हम समझ ना पाये,
नादान थे क्यो? इतने कोई ये तो बताए।
रात को चा¡द जब हमने देखा,
आच¡ल में हमारे एक फूल को फेंका।
फूल को लेकर जब देखा हमने उनको,
हल्का सा ईशारा फिर किया हमको,
अब तो हम सब कुछ जान चुके हैं,
मन में उन्हें अपना हम मान चुके हैं।
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